महामारी पूरे
विश्व
को
महादुख
दे
गयी।
कहीं
माँ-बेटी की दोस्ती
टूट
गयी,
तो
कही
मुहल्ले का
सबसे
चहेता
युवा
सबको
ज़ख्म
दे गया । जिनके स्वजनों को
उनकी
सबसे
ज्यादा
जरूरत
थी
वो
ही
चले
गए।
इन्ही
विचारों को मन
में
लिए
मैं
देहरादून में
अपने घर के
बरामदे
में
सोफे
पे टेक
लगा
के
बैठी
थी
व्
पिताजी
से
बातें
चल
रही
थी
; पुराने
मित्रों की,
रिश्तेदारों की
और
कोरोना
की।
पिताजी
ने
एक
पुराने
परिचित
के
अति
दुःख
के
बारे
मैं
बताया
की
उनके
पुत्र
व्
पुत्रवधु महामारी से
ग्रसित
हो
कर
ब्रह्मलीन हो
गए।
दिल
तो
मानो
पत्थर
हो
गया
था
तो
इतनी
वेदनापूर्ण घटना
भी
आम
सी
लगी।
लेकिन
जब
उन्होंने बताया
कि
उनका
एक
२
साल
का
पोता
भी
है
तो
मन
हुआ
कि
अभी
जाकर
उस
शिशु
को
बाहों
मैं
भर
लू।
पोते कि बातें
सुन
कर
मन
भर
आया।
कोई
बड़ा
होता
तो
रो
के
बोल
के
या
लिख
के
अपनी
पीड़ा
का
सामना
करता।
क्या
सोचता
होगा
वो
अबोध
किअचानक माँ कहाँ चली
गयी
?
" दादा, मेरी मम्मी कब आएगी, दादा, मेरी मम्मी कब आएगी ?"
और उत्तर सुने बिना फिर वो ही रट "कब आएगी मेरी मम्मी?"
दादी तो घर के काम-काज मैं व्यस्त हो गयी होगी पर दादा, क्या बोले ? बहलाने के लिए बोल देते आएगी जल्दी ही । दूसरी ओर पिताजी के ही एक परिचित, जिनकी बेटी क विवाह में मेरे माता पिता भी शामिल हुए थे और बेटी दामाद को 'खुश रहो' का आशीर्वाद दिया था, शादी के कई वर्षों बाद भी एक शिशु के आगमन के लिए पलकें बिछाए बैठे थे। ईश्वर का ये विधान भी समझ नहीं आता, कहीं अकस्मात् बिना इच्छा के इतने और कही पूरा कुटुंब याचना करके हार गया पर आस नही।
किसी भले मानस ने दोनों परिवारों को मिला दिया। एक माह के अंदर मिलने की तिथि भी तय हो गयी। इस बात पे सहमति हुई की पहले दोनों परिवार मिलेंगे, एक दूसरे को समझेंगे फिर कुछ निर्णय लिया जाएगा। वृद्ध पिता को भी अपने पोते को अनजान लोगो के सुपुर्द करने मैं दुःख के साथ संकोच भी था। निर्णय लेना अवश्य ही कठिन रहा होगा।
'मम्मी कब आएगी' की रट लगाने वाला अभी थका नहीं था। दिन, सप्ताह और अब एक माह के बाद तो वह शिशु अपनी माँ की छवि व् स्पर्श भी भूल गया होगा,किन्तु हृदय के किसी कोने में माँ का अहसास होगा जो 'दादा कब आएगी मेरी मम्मी ?" का उच्चारण दिन भर में कई बार हो जाता था। "तेरी मम्मी सोमवार को आ रही है " दादा ने पुचकार के कहा। उसे कितना समझ आया होगा मालुम नही।
आखिरकार सोमवार भी आ गया और मम्मी भी। अतिथि दंपत्ति को देख कर जैसे ही दादा ने कहा, 'ले आ गयी तेरी मम्मी", छोटे छोटे पैरों से दौड़ता हुआ अपनी माँ से लिपट गया। उसके मन में कोई संशय नहीं था। ऐसा लिपटा की उपस्थित लोग देखते ही रह गए। इतना खुश, इतना खुश की मत पूछिये और माँ के सुखद अश्रु रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
नए घर में बच्चे के आगमन पर घर में मानो उत्सव था और कुलदीप माँ की गोद में चढ़ा शांत भाव से सब कुछ निहार रहा था।
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